हाल ही में सोशल मीडिया पर Bal Sant Abhinav Arora के एक वीडियो ने काफी हलचल मचाई है। इस वीडियो में उन्होंने बताया कि उनकी माँ उनके लिए चिकन बनाती हैं, जबकि वो स्वयं नॉन-वेज नहीं खातीं। इस बयान से बाल संत के अनुयायियों के बीच एक नई चर्चा छिड़ गई है। आइए जानते हैं, इस विषय पर क्या कहना है लोगों का और अभिनव अरोड़ा का यह बयान क्यों चर्चा का विषय बन गया है।
Abhinav arora का परिचय :
Abhinav arora एक बाल संत के रूप में सोशल मीडिया पर प्रसिद्ध हैं। वे धार्मिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने विचार खुलकर रखते हैं, जिसकी वजह से उनके लाखों अनुयायी हैं। खासकर युवाओं के बीच वे काफी लोकप्रिय हैं क्योंकि उनकी विचारधारा न केवल धार्मिक है, बल्कि आधुनिक और तर्कसंगत भी है।
विवादित बयान की पृष्ठभूमि :
अभिनव अरोड़ा के हालिया वीडियो में उन्होंने यह बताया कि उनकी माँ, जो स्वयं नॉन-वेज नहीं खाती हैं, उनके लिए चिकन बनाती हैं। उन्होंने कहा कि उनकी माँ उनकी सेहत के लिए यह सब करती हैं, ताकि वे अच्छा और पोषक खाना खा सकें। हालाँकि, कई लोगों ने इस बयान को उनकी कथित ‘धार्मिक छवि’ के खिलाफ माना है और इसे उनके आदर्शों से अलग समझा।
सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया :
अभिनव अरोड़ा के इस बयान ने सोशल मीडिया पर एक बड़ी बहस को जन्म दिया। कुछ लोग उनकी ईमानदारी की तारीफ कर रहे हैं और कह रहे हैं कि एक माँ का प्यार अपने बच्चों के लिए ऐसा ही होता है। दूसरी ओर, कई लोगों ने इसे पाखंड मानते हुए उन्हें आलोचना का निशाना बनाया है। उनका कहना है कि यदि वे धार्मिक व्यक्ति हैं तो उन्हें और उनकी माँ को नॉन-वेज खाने से दूर रहना चाहिए।
अभिनव अरोड़ा का दृष्टिकोण :
अभिनव अरोड़ा का मानना है कि हर व्यक्ति को अपने स्वास्थ्य और व्यक्तिगत पसंद के अनुसार खान-पान का चयन करने का अधिकार है। उन्होंने अपने वीडियो में स्पष्ट किया कि उनकी माँ उनकी सेहत का ध्यान रखते हुए यह सब करती हैं। उनके अनुसार, धार्मिकता व्यक्तिगत आस्था का मामला है और इसमें खान-पान के चयन को लेकर किसी पर दबाव डालना उचित नहीं है।
क्या कहती है भारतीय संस्कृति और धर्म?
भारतीय संस्कृति और धर्म में खान-पान का विषय हमेशा से ही संवेदनशील रहा है। विशेष रूप से हिंदू धर्म में शाकाहारी भोजन को प्राथमिकता दी जाती है, परंतु कई क्षेत्रों में नॉन-वेज भी संस्कृति का हिस्सा है। भारतीय समाज में माँ की भूमिका सबसे अहम मानी जाती है और वह अपने बच्चे की हर ज़रूरत का ध्यान रखती है। इस मामले में अभिनव की माँ का काम माँ के प्रेम का एक उदाहरण माना जा सकता है।
नॉन-वेज और स्वास्थ्य :
कई पोषण विशेषज्ञों का मानना है कि संतुलित आहार में सभी प्रकार के पोषक तत्वों का होना आवश्यक है, जिसमें प्रोटीन, विटामिन और मिनरल्स शामिल हैं। नॉन-वेज, खासकर चिकन, प्रोटीन का एक अच्छा स्रोत माना जाता है और यह शरीर के लिए ऊर्जा प्रदान करता है। अभिनव अरोड़ा की माँ का बच्चों के पोषण के प्रति यह रुख दर्शाता है कि माता-पिता का कर्तव्य है कि वे अपने बच्चों के स्वास्थ्य का ध्यान रखें, भले ही वे खुद उस आहार का सेवन न करें।
अभिनव अरोड़ा की ईमानदारी :
अभिनव अरोड़ा का यह बयान उनके ईमानदार व्यक्तित्व को भी दर्शाता है। उन्होंने बिना किसी हिचकिचाहट के सच को स्वीकार किया और अपनी माँ के इस कदम को सार्वजनिक रूप से सराहा। इस तरह के बयान से यह भी साफ होता है कि वे अपने अनुयायियों के सामने वास्तविक जीवन की झलक प्रस्तुत करना चाहते हैं, न कि किसी दिखावे की।
विवाद का समाधान:
खान-पान और धार्मिकता का संतुलन
यह मामला केवल अभिनव अरोड़ा का नहीं है, बल्कि भारतीय समाज में खान-पान और धार्मिकता के बीच संतुलन की एक बड़ी समस्या को दर्शाता है। कई परिवार ऐसे हैं, जहाँ व्यक्तिगत पसंद और पारिवारिक परंपराओं के बीच संतुलन बनाना मुश्किल होता है। किसी भी धर्म में खान-पान के नियमों का पालन व्यक्तिगत आस्था का हिस्सा है, और इस तरह के मुद्दों पर सामाजिक सहनशीलता और समझदारी की जरूरत है।
निष्कर्ष :
अभिनव अरोड़ा के बयान ने खान-पान और धार्मिकता के विषय में एक नई सोच को उजागर किया है। उनकी माँ का यह कदम उनके प्रति उनके प्यार और परवरिश के तरीके को दर्शाता है। सामाजिक और धार्मिक मान्यताओं के बावजूद, हर माँ अपने बच्चों के स्वास्थ्य को प्राथमिकता देती है। इस पूरे विवाद से यह भी स्पष्ट होता है कि खान-पान एक व्यक्तिगत निर्णय होना चाहिए, न कि धार्मिकता का मापदंड।
अभिनव अरोड़ा के इस बयान से हम सभी को यह सीखने की जरूरत है कि हमें दूसरों की आस्थाओं का सम्मान करना चाहिए और उन्हें उनके खान-पान की स्वतंत्रता देनी चाहिए।